संगीत ने हासिल किया सबसे ऊंचा स्थान:प्रख्यात गायिका डॉ.प्रभा अत्रे

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 ‘कई कलाओं में संगीत ने अपना सबसे ऊंचा स्थान हासिल किया है। संगीत अब लोगों की ज़िदंगी का हिस्सा है। यह प्रार्थना से लेकर मनोरंजन का माध्यम हैं’। प्रख्यात गायिका पद्म विभूषण डॉ.प्रभा अत्रे ने यह बात आईटीएम यूनिवर्सिटी, ग्वालियर के सातवें दीक्षांत समारोह में कही। इस समारोह में इंजीनियरिंग,कम्पयूटर एप्लीकेशन, बिज़नेस एंड मैनेजमेंट, विज्ञान,आर्ट एंड डिज़ाइन के स्टूडेंट्स को गोल्ड मेडल, ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन की उपाधियाँ प्रदान की गई। साथ ही गायिका डॉ. प्रभा अत्रे, मशहूर चित्रकार गुलाम मुहम्मद शेख, एथलीट पद्मश्री अंजू बॉबी जॉर्ज, बुकर प्राइज़ विनर लेखिका गीतांजलि श्री, फिल्म मेकर और संगीतकार विशाल भारद्वाज़ को डीलिट, डीएसी, पीएचडी जैसी उपाधियों से नवाज़ा गया। पढ़िये कला और संस्कृति को मान देने वाली आईटीएम यूनिवर्सिटी के इस शानदार आयोजन पर ग्वालियर से सुभाष अरोरा की यह ख़ास रिपोर्ट। इनपुट, अनिल माथुर, आईटीएम,ग्वालियर। – इंदौर स्टूडियो। म्युज़िक एजुकेशन जॉब ओरियंटेड हो: ‘नब्बे साल की उम्र में मुझे आईटीएम के दीक्षांत समारोह में खड़े होकर अपनी बात कहना अच्छा लग रहा है’। यह कहते हुये वयोवद्ध गायिका ने प्रभा अत्रे ने समारोह में कहा, ‘संगीत या कला किसी चीज़ को समझने का भी ज़रिया है। संगीत की ख़ुद की भाषा और आवाज़ है। हमें संगीत को समझने या इन्जॉय करने के लिये किसी प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं। मेरा मानना है कि अगर म्यूज़िक एजुकेशन अगर जॉब ओरियंटेड हो जाये तो कई लोग जुड़ेंगे। गर्वनममेंट, एजुकेशन पॉलिसी मेकर, संस्थाओं को एक साथ मिलकर इस तरह की एक राष्ट्रीय पॉलिसी बनाना चाहिये। उन्हें सोचना चाहिये कि संगीत को कैसे बढायें और लोगों को कैसे इससे ज्यादा से ज्यादा जोड़ें’।लेखक के बारे में मानसिकता बदलने की ज़रूरत: अपने उपन्यास रेत समाधि के लिये बुकर सम्मान प्राप्त करने वाली लेखिका गीतांजलि श्री ने अपने सम्बोधन में कुछ ज़रूरी सवाल उठाये। उन्होने कहा, ‘लेखक को आज भी वह मान्यता नहीं मिलती, जिसके वे अधिकारी हैं। हमें सोचना होगा कि हम एक लेखक या कलाकार की समाज में उपयोगिता को किस तरह से देखते हैं। आज दुनिया या हमें तुरंत रिज़ल्ट पाने की आदत पड़ गई है। अगर यह मापदंड या तराजू लेकर हम चलेंगे तो हमें पता नहीं चलेगा कि लेखक सही अर्थों में आपको क्या देते हैं। आप उनके दिये अदृश्य को तौल नहीं सकते। साहित्य या कला आपके भीतर को परिष्कृत करते हैं। आपके अंतस को भी स्पेस देते हैं। कला हमारे जीवन को समृद्ध करती है: ख्यात चित्रकार पद्मभूषण गुलाम मोहम्मद शेख ने कहा, कला हमारे जीवन को समृद्ध करती हैं। हमारे अंदर मौजूद सृजनात्मक बीज के खिलने की संभावना पैदा करती है। उन्होंने कहा, ‘युवाओं को सोशल टैबू से बाहर आना चाहिये। अपने विचारों के घोड़ों पर सरपट दौड़ना चाहिये। उन्होंने यह भी कहा, कि अंग्रेज़ी अब विदेशी भाषा नहीं रही, देश के कई लेखकों ने अंग्रेज़ी में लिखा है। लेकिन अगर कोई यह कहे कि इसी भाषा में लिखो तो उससे दूर ही रहना चाहिये।  सिंगल किडनी के बावजूद मैंने ओल्पिक जीता: एथलीट पद्मश्री अंजू बॉबी जॉर्ज ने कहा, कोई एथलीट या खिलाड़ी सिंगल किडनी के साथ ओल्मिपक मेडल नहीं जीता लेकिन मैने ये कर दिखाया। मेरा मानना है कि आप अपने पर विश्वास रखते हैं तो अपने सपने पूरे कर सकते हैं। हालांकि मैं सिंगल किडनी के साथ पैदा हुई। अंजू ने कहा, मैंने खुद को साबित करने के लिये कड़ी मेहनत की है।  जब मैं चौथी कक्षा में थी, तब सुबह साढ़े चार बजे मेरा शेड्यूल शुरू होता था। ग्राउंड से स्कूल, स्कूल से ग्राउंड। जब मैंने नेशनल चैम्पियनशिप जीती तो मेरा उत्साह बढ़ता गया। मेरे ज़िंदगी में गुरू, पैरेंट्स,पति और परिवार ने सपोर्ट किया। ज़्यादातर युवतियों का शादी के बाद करियर ख़त्म हो जाता है। मैंने अपना इंटरनेशनल करियर शादी के बाद शुरू किया।मेहनत और ईमानदारी से मिलती है सफलता: फ़िल्म निर्माता,निर्देशक और संगीतकार विशाल भारद्वाज ने कहा, मेहनत और ईमानदारी के बिना सफलता नहीं मिलती। अपनी प्रतिभा को पहचानना भी ज़रूरी है। मेरे जीवन में हताशा और निराशा के हालात भी बने। मगर मैंने चुनौती ली और हिम्मत के साथ आगे बढ़ता रहा। मैं क्रिकेटर से म्यूज़िक कंपोज़र, म्यूज़िक कंपोज़र से फिल्म डायरेक्टर बना। एक आर्टिस्ट को लगता है कि उसे जो सफलता मिल रही है, वह उसके काबिल नहीं है, क्योंकि वह हमेशा कुछ नया तलाश करता रहता है और जिस दिन यह तलाश या खोज खत्म हो जाती है। कलाकार भी ख़त्म हो जाता है। अपनी परम्पराओं और आज़ादी के संघर्ष को भूले नहीं: आईटीएम यूनिवर्सिटी फाउंडर चांसलर, रमाशंकर सिंह ने कहा, ‘ईसा मसीह 30 साल की उम्र में सलीब पर लटके। तथागत बुद्ध को 30 साल की उम्र में ज्ञान और विवेक मिल गया। कई उदाहरण है कि छोटी उम्र में लोगों ने कई बड़े कार्य किये हैं। कम उम्र के कई महान् क्रांतिकारियों ने राष्ट्र के लिये लड़ाइयां भी लड़ी। गाँधीजी ने बड़ा काम किया, उन्होंने लोगों को वैचारिक दृष्टि से आंदोलित किया। उन्होंने कहा, ‘लगातार संघर्ष करने वाला आदमी, संघर्ष से सत्ता में आने वाले से बड़ा है। आपको अपनी आज़ादी और अपनी परम्पराओं को याद रखना है। यह ध्यान रखने की बात है कि अगर सारे देश के लोग ग़लत के खिलाफ़ लड़ने लगें तो युद्ध नहीं होंगे शांति और विकास दिखाई देगा।आईटीएम यूनिवर्सिटी की चांसलर रूचि सिंह चौहान ने विद्यार्थियों से कहा, आप कुछ भी हासिल कर सकते हैं आप चाहे आप किसी भी उम्र,धर्म,जेंडर,रंग,क्षेत्र के हों सफल होने के लिये सिर्फ जज़्बा, विचार और कड़ी मेहनत से कुछ भी हासिल कर सकते हैं। आज हम जनसंख्या में 8 बिलियन हो चुके हैं। लेकिन पहले भी कुछ ही सफल होते थे और अब भी कुछ ही सफल होंगे। नाम कमाएंगे जिनमें स्किल्स,नॉलेज और विज़न रहता है। एक युवा में कम्पेशन,कोलाब्रेशन,रिस्पेक्टि डिफरेंसेस,क्रिटिकल थिंकिग,एम्पथी जैसी क्वालिटी होना चाहिये’। कार्यक्रम को आईटीएम के प्रो.चांसलर दौलत सिंह चौहान, म.प्र प्राइवेट यूनिवर्सिटी रेगुलेटरी कमीशन के चेयरमैन भरत शरण सिंह और वाइस चांसलर सुनील कुमार ने भी सम्बोधित किया।1220 स्टूडेंट्स डिग्री और मेडल: समारोह में इजीनियरिंग,कम्पयूटर एप्लीकेशन, बिज़नेस एंड मैनेजमेंट विज्ञान, आर्ट एंड डिज़ाइन आदि के 1220 स्टूडेंट्स को गोल्ड मेडल,स्नातक और सनातकोत्तर की उपाधियाँ प्रदान की गईं। विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले 30 स्टूडेंट्स को गोल्ड मेडल और पांच को पीएचडी की उपाधि दी गई। इसके अलावा 11 स्पांसर्ड मेडल प्रदान किये गये। अशोक गोयल गोल्ड मेडल, द्वारका प्रसाद अग्रवाल गोल्ड मेडल, शकुंतलादेवी एंड रामदास त्रिपाठी गोल्ड मेडल, ठाकुर साहब बच्चाराज सिंह राठौर गोल्ड मेडल,जयचंद महेता गोल्ज मेडल, क्यूएनटी फिटनेस आइक ऑफ दि ईयर गोल्ड मेडल, ठाकुर जोगीराम सिंह गुर्जर गोल्ड मेडल, भगवान दास गुप्ता गोल्ड मेडल, शांति दुबे गोल्ड मेडल, समन्दरी देवी जैन सिल्वर मेडल, कमलेश कुमारी श्रीवास्तवव सिल्वर मेडल दिये गये। अकादमिक शोभा यात्रा के बीच अतिथियों का आगमन: कार्यक्रम की शुरूआत एकेडमिक प्रोसेशन से हुई शंख और तुरही की ध्वनि के बीच अतिथियों का मंच पर आगमन हुआ। आईटीएम में पढ़ रहे विभिन्न देशों के स्टूडेंट भी अपने-अपने राष्ट्र का झंडा थामे सेरेमनी का हिस्सा बनें। इसके बाद कुलसचिव डॉ.अवीर सिंह ने चांसलर रूचि सिंह चौहान से दीक्षात समारोह के प्रारंभ करने की घोषणा के लिये अनुरोध किया। संस्थान की गतिविधियों और उपलब्धियों का वार्षिक प्रतिवेदन वाइस चांसलर डॉ. एसएस भाकर ने प्रस्तुत किया। (सुभाष अरोरा ग्वालियर के प्रतिष्ठित मूर्तिकार और कला समीक्षक हैं।)
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