विजय पण्डित, इंदौर स्टूडियो। सेतु प्रकाशन समूह द्वारा प्रकाशित और सत्यदेव त्रिपाठी लिखित ‘रंग-यात्रियों के राहे गुज़र’ एक सराहनीय और संग्रहणीय पुस्तक है। इसका ज़रूरी अध्ययन उन रंग पुरोधाओं का स्मरण है, जिन्होंने हिन्दी रंगकर्म को अपना अद्वितीय योगदान दिया है। इस पुस्तक में ए.के. हंगल, हबीब तनवीर, डॉ. श्रीराम लागू, सत्यदेव दुबे, दिनेश ठाकुर, बंसी कौल और अरुण पाण्डेय जैसे दिग्गज शामिल हैं। इनमें ‘मंच’ मुंबई के विजय कुमार सबसे कम उम्र के हैं। सबके बारे में पढ़ना, विगत आधी शताब्दी के रंगमंच को जानना तो है ही, सबके रंग-पद्धति, स्वभाव और व्यक्तित्व से रूबरू भी होना है। इस किताब में बहुत से अनखुले पन्ने खुलते हैं। डॉ. लागू से तो त्रिपाठी जी ने टुकड़े-टुकड़े में 16 घंटे की बातचीत रिकॉर्ड की है। वाकई ये सामान्य संस्मरण की किताब नहीं है। इन सबके जीवन,सिद्धांत और स्वभाव के बहुत के ऐसे पक्ष हैं, जो अभी तक सामने नहीं आ पाए थे। एक बार पुस्तक आप हाथ में लेंगे तो पढ़ते ही चले जायेंगे। आप जो भी हों, रंगकर्मी, संस्कृतिकर्मी, साहित्यकार या किताब-प्रेमी, इन संस्मरणों को पढने के बाद संतुष्ट होने के साथ ही समृद्ध भी होंगे। इस पुस्तक के लिए सेतु प्रकाशन समूह की तारीफ़ करनी होगी। वहीं सत्यदेव त्रिपाठी जी के लिए साधुवाद शब्द ही है मेरे पास। इस किताब को लिखने और पढवाने के लिए। उन्होंने इस किताब को लिखने में क़रीब ढाई दशक लगाया है। https://indorestudio.com/