सुनहरे संगीत की यादों को ताज़ा कर गया ‘प्यार का सुहाना सफ़र’

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माया कोल्हेकर, इंदौर स्टूडियो। भारतीय सिनेमा के इतिहास में 1950 और 1960 के दशक को सुनहरे संगीत का दौर माना जाता है। इसी दौर में कई यादगार फ़िल्मों, निर्माता-निर्देशकों, संगीत और गायक कलाकारों का आगमन हुआ। सिल्वर स्क्रीन पर राजकपूर-नरगिस, दिलीप कुमार-वैजंती माला और देवानंद-वहीदा रहमान जैसी रोमानी जोड़ियां चमकी। उन्हीं जोड़ियों के गीत-संगीत पर आधारित संगीत का कार्यक्रम इंदौर में ‘स्वर निनाद’ संस्थाने किया। 30 सदाबहार गीतों का कार्यक्रम: ‘प्यार का सुहाना सफ़र’ शीर्षक से आयोजित इस सुरीले कार्यक्रम में करीब 30 सदाबहार गीतों को प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम में अंजलि चौहान, सपना केकरे, ज्योति अनावकर, विनय रघुवंशी, अजय देशपांडे, राजेंद्र केकरे और शैला देशपांडे ने एक से बढ़कर एक गीत प्रस्तुत किये। पुरानी फिल्मी संगीत के बकमाल दौर की यादें ताज़ा की। उन गीतों को सुनकर श्रोता सुरों की दुनिया में डूबते चले गये। श्रोताओं का गाने लगा दिल: कार्यक्रम का आगाज़ अंजली चौहान और विनय रघुवंशी ने ‘गाता रहे मेरा दिल’ गाकर किया। इसके बाद सपना केकरे ने अजय देशपांडे के साथ ‘दिल तड़प तड़प के’ गीत सुनाकर खूब तालियां बटोरी। ज्योति अनावकर और राजेन्द्र केकरे ने ‘ये रात भीगी भीगी’ गीत गाकर राजकपूर और नरगिस की स्मृति को दस्तक दी।सुमधुर गीतों का दौर चला: महफ़िल को आगे बढ़ाते हुए सपना केकरे ने लता जी का गाया सुपरहिट गीत ‘कांटों से खींच के ये आँचल’ अपने समधुर अंदाज़ में प्रस्तुत किया। वहीं अंजली ने ‘यूँ हसरतों के दाग़’ सुनाया तो ज्योति ने ‘मुरली बैरन भई’ गाकर मधुरता बिखेरी। अजय ने ‘सुहाना सफ़र और ये मौसम हसीं’ गीत गाकर कार्यक्रम को सार्थक बनाया। विनय ने ‘मेरे पैरों में घुंघरू बंधा दे गाकर’ श्रोताओं को थिरकने पर मजबूर कर दिया। राजेन्द्र केकरे ने ‘आज की रात मेरे दिल की सलामी ले ले’ गीत बेहद संजीदगी से सुनाया। शैला देशपांडे ने ‘आजा रे परदेसी’ और ‘पवन दीवानी’ गीत प्रस्तुत किया। सपना द्वारा प्रस्तुत गीत ‘होंठो में ऐसी बात’ में दिपेश जैन की टीम के ऑर्केस्ट्रेशन ने कमाल कर दिया। संगतकार थे दिपेश जैन, रवि खेड़े, जयेंद्र  रावल। राजेश गोधा ने अपने दिलकश संचालन से श्रोताओं को बांधे रखा।सुनहरे दौर का सुनहरा सिनेमा: आपको बता दें, सिनेमा के स्वर्णिम दौर में मुगले आज़म, मदर इंडिया, प्यासा, काग़ज़ के फूल, आवारा, दो बीघा ज़मीन और दो आँखे बारह हाथ जैसी यादगार फ़िल्में बनीं थी। इसी दौर में नौशाद, शकंर जयकिशन और एसडी बर्मन जैसे संगीत निर्देशकों के साथ ही लता, रफी, किशोर और मुकेश की आवाज़ का जादू भी चला। उस दौर का संगीत आज भी सिने रसिकों के दिलो दिमाग़ में गूँज रहा है। https://indorestudio.com/

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