सुपर ब्वायज ऑफ मालेगांव: नासिर शेख की हिंदी में बायोपिक

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अजित राय, जेद्दा, सऊदी अरब। महाराष्ट्र का मालेगांव ‘बॉलीवुड की फिल्मों का स्पूफ सिनेमा’ के लिये अपनी ख़ास पहचान रखता है। पहली बार इसकी ओर दुनिया का ध्यान तब गया जब 2008 में मालेगांव के एक उत्साही नौजवान फैज अहमद खान एक हिंदी डाक्यूमेंट्री बनाई ‘मालेगांव का सुपरमैन।’ इसमें बॉलीवुड की फिल्मों के स्पूफ सिनेमा यानि नकली सिनेमा की प्रक्रिया को विषय बनाया गया था। इस फिल्म को दुनिया भर में काफी शोहरत और अवार्ड मिले। हालांकि भारत में यह फिल्म 29 जून 2012 में प्रदर्शित हो सकी। इसी फिल्म में एक किरदार थे नासिर शेख।नासिर शेख की हिंदी में बायोपिक: रीमा कागती ने ‘मालेगांव का सुपरमैन’ डाक्यूमेंट्री के आधार पर उसके एक प्रमुख किरदार नासिर शेख की हिंदी में बायोपिक बनाई है- ‘सुपर ब्वायज आफ मालेगांव।’ फरहान अख्तर, जोया अख्तर और ऋतेष सिधवानी के साथ रीमा कागती भी फिल्म की एक प्रोड्यूसर है। यह फिल्म टोरंटो अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में शोहरत बटोरने के बाद सऊदी अरब के जेद्दा में आयोजित चौथे रेड सी अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में प्रतियोगिता खंड में दिखाई गई और काफी सराही गई।टोरंटो में भारत की इकलौती फ़िल्म: इस साल इस फिल्म समारोह में भारत से यह इकलौती फिल्म है। इसमें नासिर शेख की भूमिका शाहरुख खान के साथ करण जौहर की फिल्म’ माय नेम इज खान ‘(2010) से अपना करियर शुरू करने वाले आदर्श गौरव ने निभाई है। आदर्श गौरव को अंतरराष्ट्रीय ख्याति 2021 में अरविंद अडिगा के उपन्यास ‘ द ह्वाइट टाइगर ‘ पर इसी नाम से बनी रामिन बहरानी की फिल्म में मुख्य भूमिका निभाने पर मिली। आदर्श गौरव के अलावा फिल्म में अधिकांश कलाकार नये है जिन्हें आमतौर पर कोई खास पहचान नहीं मिल पाई है। केवल अनुराग कश्यप की फिल्म ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ से चर्चा में आए विनीत कुमार सिंह को लोग जानते हैं जिन्होंने इस फिल्म में एक स्क्रिप्ट राइटर का बेहद उम्दा किरदार निभाया है। आदर्श के साथ नये कलाकारों का बढ़िया काम: आदर्श गौरव की अदाकारी तो अद्भुत है हीं। फिल्म के नए कलाकारों ने भी बहुत उम्दा काम किया है। फिल्मांकन स्टाइलाइज्ड होने के बावजूद यथार्थवादी लगता है। मेलोड्रामा बस ज़रूरत भर है और फिल्म अंत तक बांधे रखती है। यहां यह भी बताना जरूरी है कि इसे वरुण ग्रोवर ने लिखा है और सिनेमैटोग्राफी है स्वप्निल एस सोनावणे की जो बहुत ही उम्दा और नेचुरल है। फिल्म में हिंदी सिनेमा के लिए कस्बाई दीवानगी की अनेक कहानियां हैं। नासिर शेख और उनके दोस्तों की कहानियां जो हिंदुस्तान के गांवों कस्बों में बिखरी पड़ी हैं और जिनमें बालीवुड के प्रति जबरदस्त दीवानगी है।फिल्मों के हलाल और हराम वीडियो: मालेगांव में यह 1997 का समय है जब छोटे-छोटे गांवों कस्बों में नया नया टेलीविजन और फिल्मों के वीडियो कैसेट आए थे। देखते ही देखते छोटे छोटे वीडियो पार्लर खुल गए थे। चूंकि हॉलीवुड और बॉलीवुड के ये वीडियो कैसेट पाइरेटेड (नकली) होते थे, इसलिए इनका प्रदर्शन गैर कानूनी था। मालेगांव में नासिर का बड़ा भाई ऐसा ही एक वीडियो पार्लर चलाता था। वह कहता था कि दो तरह के वीडियो होते हैं – हलाल और हराम। वह पुरानी फिल्मों के वीडियो को हलाल और नई फिल्मों के पाइरेटेड वीडियो को हराम वीडियो कहता था, हालांकि दोनों गैर कानूनी होते थे। एक दिन उस वीडियो पार्लर पर पुलिस छापा मारकर उसे बंद करवा देती है। नासिर शेख को इस घटना से बहुत अपमान का अनुभव होता है। यहीं से मालेगांव में बालीवुड का स्पूफ सिनेमा जन्म लेता है। नासिर शेख तय करता है कि वह मालेगांव के लड़कों को लेकर अपना सिनेमा बनाएगा।मल्लिका से प्रेम, शबीना से शादी: नासिर शेख के जीवन की अपनी मुश्किलें हैं। वह अपने गांव की ही एक लड़की मल्लिका से प्रेम करता है। मल्लिका पढ़ने-लिखने में तेज हैं और नासिर शेख पढ़ाई-लिखाई छोड़कर शादी व्याह में वीडियो रिकॉर्डिंग का काम करने वाला साधारण मजदूर। जब उसके परिवार वाले मल्लिका के यहां रिश्ता लेकर जाते हैं तो उसके पिता इनकार कर देते हैं और बताते हैं कि अपनी बेटी का रिश्ता उन्होंने मुंबई में रहने वाले एक अच्छे परिवार में तय कर दिया है। उधर उसका बड़ा भाई उसकी शादी शबीना से तय कर देता। इन घटनाओं से आहत नासिर शेख तय करता है कि चाहे जो हो, वह अपनी फिल्म बनाएगा- ‘ मालेगांव का शोले।’पैसों की जुगाड़ लगाकर ऑडिशन: जहां तहां से पैसों का जुगाड कर वह ऑडिशन लेना शुरू करता है। वह शोले के असली किरदारों के नाम बदल देता है। मसलन मालेगांव का शोले में बसंती बासमती और गब्बरसिंह रब्बर हो जाते हैं। समस्या है कि अब बासमती के रोल के लिए लड़की कहां से ले आएं। एक शादी की वीडियो रिकॉर्डिंग के दौरान वह स्टेज पर नाच गा रही तृप्ति से मिलता है। बड़ी मुश्किल से कुछ ज्यादा पैसों पर वह राजी हो जाती है। नासिर शेख के भाई के वीडियो पार्लर में भव्य प्रीमियर रखा जाता है। फिल्म सुपरहिट हो जाती है। इसी तरह नासिर शेख बालीवुड की कई फिल्मों का स्पूफ बनाता है और खूब पैसे कमाता है। मालेगांव से मुंबई तक वह मशहूर हो जाता है।पैसा और शोहरत नासिर को ही क्यों: यहीं से उसके जीवन में संकट की शुरुआत होती है। उसके दोस्तों को लगता है कि फिल्म तो सभी मिलकर बनाते हैं, लेकिन पैसा और शोहरत केवल नासिर शेख को हीं मिल रहीं हैं। उसके सारे दोस्त एक-एक कर उससे अलग हो जाते हैं। फिल्म में इसी तरह की कुछ और कहानियां भी हैं, इनमें लेखक कवि फारूख और तृप्ति शामिल हैं। तृप्ति हीरोइन बनने का सपना देखती है और अपनी तुलना श्रीदेवी से करती रहती। हकीकत में वह अपने पति से प्रताड़ित है और रोज मार खाती है। फिल्म की शूटिंग के दौरान उसे नासिर शेख के एक दोस्त शफीक से इश्क हो जाता है। तभी पता चलता है कि शफीक को कैंसर है। अलबेला की पटकथा वाली फ़िल्म फ्लॉप: मुंबई में थोड़ी बहुत सफलता हासिल करने वाले मालेगांव के एक अभिनेता आसिफ अलबेला की पटकथा पर फिल्म बनाना नासिर शेख को भारी पड़ जाता है। फिल्म बुरी तरह फ्लॉप हो जाती है और नासिर शेख का सारा पैसा डूब जाता है। शफीक के कैंसर के इलाज के बहाने दोस्त फिर मिलते हैं। एक दिन लेखक फारूख नासिर से बड़ी महत्वपूर्ण बात कहता है – ‘ हिंदुस्तानी सिनेमा की किताब में तूने एक पन्ना जोड़ दिया है नासिर। वह मिटेगा नहीं। एक दिन जाना तो सबको है तो डरने का क्या है। बस दुःख तो यहीं है कि बिना कुछ किए ही चले जाएंगे’। वह आगे कहता है-” हममें से बहुत सारे दोस्त ऐक्टर बनना चाहते थे पर नहीं बन पाए।  मेरे पास स्क्रिप्ट है। चलो हम अपनी फिल्म बनाते हैं -” मालेगांव का सुपरमैन।”नौजवान आख़िर रच देते नया इतिहास: नासिर शेख को एक नया रास्ता मिलता है। वह इस फिल्म की तैयारियों में जुट जाता है। एक रूठे हुए दोस्त को मनाता है कि वह विलेन का रोल करे। उसकी पत्नी अपनी सारी बचत के पैसे उसे सौंप देती हैं जो उसने वकालत से कमाई है। वह तृप्ति को भी कोर्ट से तलाक दिलाकर मुक्त कराती है। सुपरमैन के रोल के लिए नासिर अपने कैंसर से जूझ रहे दोस्त शफीक को चुनता है जो नासिक के अस्पताल में भर्ती हैं। सुपरमैन के रोल का ऑफर मिलने पर डॉक्टर भी तैयार हो जाता है। मालेगांव के ये नौजवान अब स्थानीय साधन और उपकरणों से फिल्म की शूटिंग करते हैं और इतिहास बन जाता है। (अजित राय प्रख्यात कला एवं फिल्म समीक्षक और अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह के विशेज्ञष हैं। दुनिया भर के फिल्म समारोहों पर हिन्दी में लिखने वाले पहले भारतीय पत्रकार हैं। ) आगे पढ़िये – राहत साहब ने कहा था, फ़ख्र करने के काबिल अभी नहीं लिखा https://indorestudio.com/rahat-sahab-ne-kaha-tha/

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