भोपाल से तारिक दाद की रिपोर्ट। शहीद भवन में महाश्वेता देवी की कहानी पर आधारित नाटक ‘रुदाली’ का पिछले दिनों भोपाल में मंचन हुआ है। नाटक स्त्रियों की व्यथा को दर्शाता है, इसका नाट्य रूपांतर ऊषा गांगुली का था ! नाटक का केन्द्रीय चरित्र सनीचरी है जिसे शनिवार के दिन पैदा होने के कारण यह नाम मिला है और समाज मानता है कि वह असगुनी है और इसके लिए उसके परिवार में कोई नहीं बच पाया। एक-एक कर के सब काल की भेंट चढ़ गए। सनीचरी न कभी रोयी न ही उसकी आँखों से आंसू बहे , मगर इसे त्रासदी कहे या विडम्बना कि उसे रुदाली बनना पड़ा ! रुदाली यानी वह स्त्री जो भाड़े पर रोती है, मेहनताना लेकर मातम करती है।
एक पात्र के रूप में सनीचरी उस तबके का प्रतिनिधित्व करती है जिसके पास न चुनाव की स्वतंत्रता होती है, न निश्चिंत होने के साधन, लेकिन वह कभी टूटती नहीं, उसकी जिजीविषा बराबर उसका साथ देती है। वह अपना सहारा खुद का बनती है, जो जाहिर है कि उसका अन्तिम विकल्प होता है। समाज के निम्नवर्ग में स्त्री जीवन का एक लोमहर्षक विडम्बना को रेखांकित करता यह नाटक शिल्प के स्तर पर भी एक सम्पूर्ण नाट्य-कृति है। निर्देशक केजी त्रिवेदी अपने नाटकों में कभी ऐसा कोई मंचीय धमाका नहीं करते जिससे दर्शक भौंचक हो जाये लेकिन दर्शकों की कसौटी पर वो खरे इसलिए उतरते हैं क्योंकि वो कथानक के साथ प्रयोग के नाम पर अति नहीं करते हैं,उनके नाटक देखते हुए दर्शक किसी मायावी लोक में भले न पहुंचे मगर चेतना में रहकर मंत्र मुग्ध हो नाटक का आनंद ज़रूर लेते हैं। मंच परिकल्पना दिनेश नायर की हो तो अभिनेता को खेलने के लिए पूरा स्पेस मिलेगा ही । वो मंच पर व्यर्थ के अतिक्रमण के खिलाफ ही रहते हैं ,चैतन्य भट्ट का संगीत काल और दृश्यों के अनुरूप मार्मिक और प्रभावी है !
सनीचरी की भूमिका में पूजा मालवीय कमाल करती हैं , बहुत समय बात भोपाल रंगमंच को सुंदर और अच्छी अभिनेत्री मिली है , उनकी आवाज़ और संवाद अदायगी का रियाज़ उनकी सबसे बड़ी ताकत है,परवतिया की भूमिका में शारदा सिंह और बिखनी की भूमिका में सुनीता अहीरे , पूजा मालवीय से कमतर नहीं हैं उनकी जितनी भूमिका है उसमें वो प्रभावी हैं क्योंकि नाटक स्त्री प्रधान है तो महिला अभिनेत्रियों की संख्या नाटक में अधिक है फिर सभी अभिनेत्रियों ने शानदार काम किया है , उनके अभिनय में ईमानदारी और रिहर्सल की मेहनत साफ झलकती है ! प्रारम्भ से नाटक ने जो पकड़ बनाई वो अंत तक बनी रही , न तकनीकी जर्क न कलाकारों में हड़बड़ाहट , सब एक सूत्र में बंधे हुए अपने अपने रूप में गढ़े हुए ! खैर , ” रुदाली ” दर्शकों पर असर छोड़ता है और इसके कई दृष्य उनकी स्मृति में कई सालों तक घुमड़ते रहेंगे ।एक शानदार और सफल प्रस्तुति के लिए टीम त्रिकर्षि को बधाई ! ( इंदौर स्टुडियो डॉट कॉम )