गेयटी थियेटर फेस्टिवल में नाटक ‘एक मामूली आदमी’ ने की आँखें नम

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ममता पांडेय, इंदौर स्टूडियो। शिमला के गेयटी थियेटर फेस्टिवल में नाटक ‘एक मामूली आदमी’ का मंचन हुआ। दर्शकों की आँखें नम कर देने वाली यह इसकी आख़िरी प्रस्तुति रही। इसके साथ ही 21 सितंबर से जारी चार दिवसीय इस फेस्टिवल का समापन हो गया। अनुकृति रंगमंडल, कानपुर के कलाकारों की यह यादगार प्रस्तुति रही। अशोक लाल लिखित इस नाटक का निर्देशन डॉ.ओमेन्द्र कुमार ने किया। यह नाटक, एक क्लर्क के ज़रिये आम आदमी के जीवन, उसकी व्यथा-कथा, उसके अहसासों और दर्द को बयान करता था। ख़ास बात ये भी है कि अनुकृति रंगमंडल की इस प्रस्तुति का लखनऊ के वाल्मीकि रंगशाला में भी बीते दिनों सफल मंचन हुआ था। ईश्वर चंद्र के जीवन की कहानी: यह संवेदनशील कथा उस क्लर्क के जीवन पर आधारित है जिसकी पत्नी का देहावसान हो चुका है। विवाह के बाद बेटा भी अपनी जीवन में व्यस्त हो गया है। घर में बेटे, बहू और पोते के होते हुए भी महापालिका के बड़े बाबू ईश्वर चंद्र खुद को अकेला महसूस करते हैं। नाटक में दिखलाया गया है कि महापालिका के दफ्तर में बड़े बाबू ईश्वर चंद्र अवस्थी (महेन्द्र धुरिया) सीधे सादे, ईमानदार लेकिन सिद्धांतों पर चलने वाले इंसान हैं। पत्नी के न रहने पर उन्होंने अपने बेटे उमेश (दीपक राही) का जीवन संवारने में अपनी सारी उम्र लगा दी। जैसा कि आमतौर पर होता है शादी के बाद उमेश अपनी पत्नी रमा (दीपिका) और बेटे स्वप्नेश के साथ अपनी दुनिया में व्यस्त हो चुका है। जबकि ईश्वर चंद्र का जीवन घर और दफ्तर के बीच सिमट गया है।रिटायरमेंट के करीब ख़ुशी की तलाश: रिटायरमेंट करीब आते देख अवस्थी जी को अकेलेपन का एहसास होता है, वह दफ्तर के मस्तमौला साथी खरे (विजयभान सिंह) का साथ पाने की कोशिश करते हैं मगर उन्हें वो खुशी नहीं मिलती जिसकी उन्हें तलाश थी। दफ्तर की एक क्लर्क लक्ष्मी (संध्या सिंह), जो बेहद ख़ुश मिजाज़ है,  ईश्वर चंद्र लक्ष्मी से उसके खुश रहने का राज जानने की कोशिश करते हैं। विधायक की ज़मीन पर नज़र: इधर मध्यम वर्गीय लोगों से आबाद जेजे कालोनी के पास स्थित महापालिका के मैदान, जिसे प्राइमरी स्कूल के लिए रिजर्व रखा गया है। वहां पर एक विधायक एक ट्रस्ट के जरिये मंदिर बनाने की फिराक में हैं। जबकि कॉलोनी वाले चाहते हैं  कि इस मैदान में पार्क और सार्वजनिक शौचालय बनाया जाये। इस मैदान पर पार्क बनाने की सहमति की फाइल अवस्थी जी के पास है।पार्क में हो जाती है अचानक मौत: मंदिर के हिमायती महापालिका के कमिश्नर (सुमित गुप्ता), क्लर्क बग्गा और तिवारी (अंचित श्री, सम्राट यादव) और पंडित (हर्षित, अजीत) बहुत दवाब डालते हैं लेकिन अवस्थी जी डटे रहते हैं। आखिरकार पार्क की एक बेंच पर रात की खामोशी के बीच अवस्थी जी की देह और आत्मा का रिश्ता टूट जाता है। तेरहवीं के दिन जब चौकीदार अवस्थी जी का सामान लेकर पहुंचता है तब कहीं उमेश को पता चलता है कि उनके पिता को गैस्टिक कैंसर था।कलाकारों का भाव प्रवण अभिनय: प्रमुख भूमिकाओं में विजयभान (खरे), दीपक राज राही (उमेश), दीपिका सिंह (उमेश की पत्नी रमा) ने अपने किरदारों को बखूबी निभाया। संवेदनशील दृश्यों में संध्या सिंह (लक्ष्मी) के चेहरे पर तेजी से बदलते भाव उनकी अभिनय क्षमता को दर्शाने में पूरी तरह सफल रहे। हालांकि ईश्वर चंद्र के चरित्र में महेन्द्र धुरिया का अभिनय तो ठीक था मगर डिलीवरी पिच डाउन होने से उनके कई महत्वपूर्ण संवाद पीछे बैठे दर्शकों तक नहीं पहुंच सके।नाटक में इनकी भी रही भूमिकाएं: महेश जायसवाल, जौली घोष, कमल गौड़, जिज्ञासा शुक्ला, कुशल गुप्ता, अमित सोनकर ने भी नाटक में अभिनय किया। सलाहकार निर्देशक, प्रकाश परिकल्पना कृष्णा सक्सेना, संगीत विजय भास्कर, मंच व्यवस्था आकाश शर्मा की रही। नाटक का निर्देशन डॉ. ओमेन्द्र कुमार ने किया। वे शिमला में गेयटी थियेटर फेस्टिवल के निर्देशक भी रहे। यह फेस्टिवल अनुकृति रंगमंडल कानपुर द्वारा भाषा एवं संस्कृति विभाग हिमाचल प्रदेश, एमेच्योर ड्रामेटिक क्लब शिमला तथा संस्कृति मंत्रालय तथा भारत सरकार नई दिल्ली के सहयोग से आयोजित किया गया। आगे पढ़िये –

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